Thursday, December 7, 2023
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नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन, 98 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा भारत को हरित क्रांति की दिशा में मार्गदर्शन देने वाले महान कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन का आज चेन्नई में अच्छा न होने पर निधन हो गया। उन्हें हरित क्रांति के पिता के रूप में जाना जाता है।

उनके योगदान से ही भारत में कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति देखने को मिली। उनके जाने से देश को एक बड़ी खोज हुई है। वे न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि एक समर्थ विचारक और विज्ञान के प्रचार-प्रसार में समर्पित व्यक्ति भी थे। उनका जाना भारतीय कृषि जगत के लिए एक अपूराणीय क्षति है। वे हमेशा हमारी यादों में जिन्दा रहेंगे। उनकी आत्मा को शांति मिले।



भारतीय कृषि विज्ञान के महान समर्थक एम एस स्वामीनाथन का गुरुवार, 28 सितंबर, 2023 को चेन्नई में निधन हो गया। जो तमिलनाडु की राजधानी है। सुबह 11:20 बजे उन्होंने इस जीवन से विदा ली। स्वामीनाथन, जो 1925 में जन्मे थे, ने 98 वर्ष की आयु में जीवन के सफर को समाप्त किया। भारत में हरित क्रांति के पिता के रूप में प्रसिद्ध, उनका योगदान कृषि क्षेत्र में हमेशा स्मरण किया जाएगा। एम एस स्वामीनाथन- नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

डॉ. स्वामीनाथन एग्रीकल्चरल विज्ञान में एक अधिकृत वैज्ञानिक थे। वे 1972 से 1979 तक ‘इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ के अध्यक्ष रह चुके हैं। भारत सरकार ने उन्हें उनके अद्वितीय योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था। उनका नाम उन विशेष वैज्ञानिकों में लिया जाता है जिन्होंने भारतीय किसानों के लिए धान की उच्यतम उत्पादकता वाली किस्म का विकास किया।

भारतीय कृषि विज्ञान के प्रमुख चेहरे, एम एस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम नगर में हुआ था। उनके पिता, एम के संबासिवन, एक प्रमुख सर्जन थे। स्वामीनाथन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कुंभकोणम में प्राप्त की थी। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनके पिता के आदर्शों से प्रेरित होकर, स्वामीनाथन ने कृषि में अपना करियर तय किया। यदि इन आदर्शों का प्रभाव उन पर नहीं पड़ता, तो आज वह एक पुलिस अधिकारी होते, क्योंकि 1940 में उन्होंने पुलिस सेवा की परीक्षा में भी सफलता पाई थी। लेकिन उन्होंने अपने जीवन की दिशा को कृषि की ओर मोड़ दिया और इस क्षेत्र में दो स्नातक डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने भारतीय कृषि में अनुपम योगदान दिया।

एम एस स्वामीनाथन- नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन हरित क्रांति ने बदली भारत की तस्वीर

 डॉ. एम एस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कृषि विज्ञान में अनमोल योगदान दिया। वे ‘हरित क्रांति’ के पिता के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिसने भारत को अन्नदाता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ. स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में उचित सुधार लाने के लिए भारतीय सरकार के साथ समझौता किया। उनके नेतृत्व में भारत में नई जातियों का परिचय दिया गया जो उच्च उपज देने वाली थी। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उत्साही किसानों को सही समय पर सही तकनीकी जानकारी प्राप्त हो। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन



डॉ. स्वामीनाथन को उनकी कठिनाइयों और समर्थन के लिए कई पुरस्कार दिए गए। इनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं –

एस.एस. भटनागर अवॉर्ड, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंसेज अवॉर्ड, वर्ल्ड फूड प्राइज अवॉर्ड, लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवार्ड, पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण। उन्हें विश्व भर की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से 81 मानद डॉक्टरेट उपाधियां भी प्रदान की गई।डॉ. स्वामीनाथन की जीवन रचना और उनके योगदान को याद किया जाएगा, जिसने भारत को कृषि विज्ञान में वैश्विक स्तर पर मजबूती प्रदान की। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

एम एस स्वामीनाथन, जो भारतीय हरित क्रांति के पिता के रूप में माने जाते हैं, उनका निधन 28 सितंबर को चेन्नई में 98 वर्ष की उम्र में हुआ। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

इस पॉडकास्ट में, विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, जो उनकी सबसे बड़ी पुत्री और एमएस स्वामीनाथन अनुसंधान संस्थान की अध्यक्ष भी हैं, बिजनेसलाइन के वरिष्ठ संपादक श्री विनय कामथ के साथ मीलकर अपने पिता की अनमोल यादों का साझा करती हैं।

1987 में आज की तारीख को भारत के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस अद्भुत सम्मान को पाने के पीछे कारण था उनकी हरित क्रांति में निरंतर और महत्वपूर्ण भूमिका। इस उपलब्धि से वह विश्व में इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बने।

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. नार्मन बोरलॉग थे जिन्होंने इस महत्वपूर्ण पुरस्कार की स्थापना की थी। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

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हरित क्रांति के मार्गदर्शक एमएस स्वामीनाथन ने भले ही आईपीएस में सेलेक्शन प्राप्त किया हो, लेकिन उन्होंने कृषि को ही अपना मिशन माना। बंगाल के भयंकर अकाल ने उनके दिल में मेडिकल की पढ़ाई के प्रति रुचि को कम कर दिया। जानिए उन्होंने कैसे मेक्सिको से गेहूं की उन बीजों को भारत में लाया, जिसने पूरे देश का चेहरा ही बदल दिया। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

इस तरह बढ़ाया गया गेहूं उत्पादन – नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

1943 में बंगाल के अकाल का मनजर हम सभी को याद है। लेकिन, 20 वर्ष बाद भी, अर्थात 1964-65 के आसपास, भारत में अनाज की कमी समस्या बनी रही। वर्षा की अनियमितता ने अकाल के संकेत दिए।

उस समय हमें अमेरिका की पीएल-480 योजना के अंतर्गत लाल गेहूं आयात करना पड़ रहा था। फिर 1965 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष भी शुरू हो गया और अमेरिका ने धमकी दी कि यदि हम युद्ध नहीं रोकते तो वे हमें गेहूं नहीं पहुंचाएंगे।

यह नहीं कि भारत में 1964 से पहले गेहूं की खेती नहीं होती थी। हां, गेहूं की खेती हमेशा से हुआ करती थी, पर 1950 में उसकी क्षेत्रीय सीमा मात्र 97.5 लाख हेक्टेयर तक थी और उत्पादन भी 64.6 लाख मीट्रिक टन था, जो हमारी आवश्यकता को पूरा नहीं कर पा रहा था।

हालांकि भारत में विभिन्न प्रकार के गेहूं की किस्में थीं, लेकिन उनमें से अधिकतर बड़े आकार के थे। यह गेहूं वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों के लिए उपयुक्त था। परंतु, जब छोटी किस्में आईं, तब स्थितियां बदली। इन नई किस्मों को भारत में लाने और हरित क्रांति को सफल बनाने में डॉ. एमएस स्वामीनाथन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन



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मैक्स‍िको से ले आए बौनी क‍िस्मों के बीज  

1964 से पहले, भारतीय कृषि क्षेत्र में मौजूद गेहूं की प्रमुख किस्में कम पैदावार प्रदान करती थी। साल 1950 में, प्रति हेक्टेयर मात्र 663 किलोग्राम गेहूं की पैदावार होती थी। हमारे देशी गेहूं के पौधे 115 से 130 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक होते थे, जिससे वे आसानी से गिर जाते थे। उस समय यूरिया जैसे सिंथेटिक उर्वरक भी प्रयोग में आ चुके थे, जिसके कारण और भी ज्यादा मजबूत और संवेदनशील किस्में की जरूरत पाई जाती थी।

भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तत्परता दिखाई और मैक्सिको के CIMMYT संस्थान से ऐसे बीज मंगवाने का निर्णय लिया। वहीं, डॉ. नॉर्मन बोरलॉग, जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान में कृषि अनुसंधानकर्ता थे, मैक्सिकन ड्वार्फ जैसी उच्च पैदावार और रोग-प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों का विकास कर रहे थे। इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया में गेहूं के बीज को भारत लाने का जिम्मा डॉ. बोरलॉग और डॉ. एमएस स्वामीनाथन पर था, और इस प्रक्रिया में उनका योगदान अमूल्य था।

स्वामीनाथन ने कहां रोपे हर‍ित क्रांत‍ि के बीज – नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

भारत ने मैक्सिको के सिमिट संस्थान से गेहूं की कुछ विशेष किस्में जैसे कि लर्मा रोहो (Lerma Rojo), सोनारा-64, और सोनारा-64-A आदि के करीब 18,000 टन बीज आयात किया। इस महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कार्य में डॉ. स्वामीनाथन की अग्रणी भूमिका थी। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

डॉ. स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना और पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय ने दिल्ली, हरियाणा, और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में इन मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया। इसमें दिल्ली के जौंती गांव का परीक्षण भी शामिल था। परिणामत: यह किस्में बहुत ही प्रोडक्टिव और फायदेमंद साबित हुईं, और इनकी पैदावार पूर्व मौजूद भारतीय किस्मों से अधिक थी।



आसान नहीं था हर‍ित क्रांत‍ि का काम

नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन हरित क्रांति और गेहूं की इस अद्वितीय यात्रा में एक अहम कड़ी अब तक छोड़ दी गई है, जिसमें कोरिया और जापान की महत्वपूर्ण भूमिका है। वास्तव में, मैक्सिको में विकसित हो रही लर्मा रोहो और सोनारा-64 जैसी किस्मों में, बौनेपन के जीन के लिए एक गेहूं किस्म, नोरिन-10, का उपयोग हुआ। इसकी मूल जनक जाति कोरिया से जापान पहुंची, और फिर उसे अमेरिका में लेजाया गया।

नोरिन-10 के अद्वितीय जीन को फिर मैक्सिको के सिमिट में भेजा गया, जहां डॉ. नॉर्मन बोरलॉग और उनकी टीम ने इसे स्थानीय गेहूं किस्मों के साथ संयोजित करके नई उच्च प्रदर्शन की किस्मों की विकसना की।

नोरिन-10 का तना चौड़ाई में केवल 60-100 सेमी होता था, और इसके दो अद्वितीय जीन, Rht1 और Rht2 के माध्यम से गेहूं की उचाई को कम किया गया। यह नई किस्में बाद में वैश्विक स्तर पर वितरित की गई और यह परिप्रेक्ष्य में भारत के गेहूं उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और अब भारत विश्व में गेहूं के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को असली अर्थ में “खाद्य के क्रांतिकारी” कहा जा सकता है। उनके नेतृत्व में, न केवल गेहूं, बल्कि धान और अन्य फसलों में भी प्रगति हुई। 1961 में जैविक अनुसंधान के लिए उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

उनकी अनुपम योगदान को देखते हुए, 1989 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा। डॉ. स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में भारत ने भुखमरी के खतरे को पार किया। 1971 में उन्हें सामाजिक नेतृत्व और उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित रामोन माग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, वे विश्व खाद्य पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता भी थे, जो उनकी अनगिनत प्रतिबद्धता और समर्पण को प्रकट करता है। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन




नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन जिन्हें एम एस स्वामीनाथन  के जीवन और कार्यों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करनी हो, वे विकिपीडिया जैसे संस्थानिक प्लेटफॉर्म पर जा सकते हैं, जहाँ पर उनके जीवन और उनके योगदान को विस्तार से चर्चा की गई है। वहां से आप उनके जीवन की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। नहीं रहे अब एम एस स्वामीनाथन

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