रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस पूरे महीने मुस्लिम वर्ग के लोग अल्लाह की इबादत करते है और इबादत के साथ-साथ दान धर्म भी करते है। रोजा रखने की शुरुआत अर्धचन्दाकार(आधा चाँद) दिखाई देने के बाद होती है। चाँद दिख जाने के बाद लोग एक दूसरे को रमजान मुबारक बोलकर बधाई देते है और एक-दूसरे से गले मिलते है।
इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से शुद्ध होने का महीना माना जाता है। इसमें आप अनुशासन और संयम भी सीखते है रमजान को अरबी भाषा में रमदान कहा जाता है। रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बाँटा गया है हर हिस्से में 10 दिन दिन आते है।
10 दिन को अरबी में अशरा कहा जाता है इसलिए रमज़ान के हर हिस्से को अशरा कहा जाता है। पहला अशरा रहमत का ,दूसरा अशरा इबादत का और तीसरा अशरा मगफिरत का कहलाता है। मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार रमजान का महीना अपने आप पर नियंत्रण रखने और संयम रखने का इम्तिहान होता है।
पूरे दिन भूखे-प्यासे रहना संयम का एक तरीका माना जाता है और दूसरा कारण ये भी है कि किसी गरीब की भूक-प्यास, दुःख-दर्द और लाचारी को समझ सके और उनकी मदद करे। अपने आँख कान जीभ सब पर नियंत्रण रखना भी जरुरी है यानी न कुछ बुरा देखना है न कुछ बुरा सुनना है और ना ही कुछ बुरा बोलना है।
वैसे तो 12 महीने जकात दी जा सकती है लेकिन रमजान के महीने में जकात देने से ज्यादा सबाब मिलता है। मान्यता है की अपनी सालाना कमाई का 2.5% हिस्सा किसी गरीब को दे देना चाहिए। रमज़ान महीने में की गयी इबादत से अल्लाह ताला खुश होते है और मांगी हुई दुआ भी क़बूल होती है।